मेरा परिचय – बलराजनीति

तन से हार जाऊं, वैसी मिट्टी से नहीं बना।
मन से हार जाऊं, वैसी शिक्षा नहीं मिली।।
जब असुरो की दुष्टता बढ़ जाए तब तूफ़ान बन जाऊ।
ऐसे में मै एक बदलाव की पहचान बन जाऊ।।
हर षड़यंत्र का समाधान हूँ मैं।
कण-कण में गूंजता एक आवाज़ हूँ मैं।।
जहरीले शब्द भी मीठी लगे मुझे।
मेरे मीठे शब्द भी जहरीले लगे तुझे।।
सूरज को चुमता विश्वास हूँ मैं।
बादलो मे घूमता बरसात हूँ मैं।।
‘बल’राम के बुद्धि का एक बल हूँ मैं।
‘राज’कुमारी के हृदय का एक राज हूँ मैं।।
तोड़ न पाओगे जीसे एक ऐसा सोच हूँ मैं।
जला न पाओगे जिसे एक ऐसा नीति हूँ मैं।।
न कोई चेहरा, न कोई मुखौटा।
यही मेरी पहचान, यही मेरा परिचय।।
मैं, बलराजनीति – एक नविन सोच और नीति…
आगे पढ़ने के लिए जुड़े रहिये…
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2 Comments
Pradeep kumar yadav · September 14, 2018 at 5:11 am
मै आपका फैन हूं
भईया
अपने क्षेत्र का नाम आप और भी ऊंचा किजिए।
आपके इस कविता को मेरे तरफ से 5 star
admin · November 14, 2018 at 10:15 am
Thank you.